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बित्ता भर रोशनी

क्यों लिखूँ मैं कविता
शिकारियों और बंदूकों पर
टपकती हुई लाल बूँदों पर
मैं नहीं चाहती
कि जो नहीं जानते अभी
शिकारियों की भाषा
मेरे शब्द ले जाएँ उन्हें उन तक।

मैं लिखूँगी कविता
तुतलाते बच्चों पर
खुशबू भरे फूलों पर
चमकते हुए जुगनुओं पर
हँसती हुई फसलों पर।

मैं चाहती हूँ बाँटना
उन आँखों को
बित्ता भर रोशनी
जो खुल रही हैं इक्कीसवीं सदी के
छलते अँधेरों में

मैं लिखूँगी कविता
टिमटिमाते शब्दों से
बित्ता भर रोशनी के लिए।

१६ फरवरी २०१५

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