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अनुभूति में श्यामल सुमन की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चेतना (चार मुक्तक)

दोहों में-
दोहों में व्यंग्य
नेता पुराण

हार जीत के बीच में

अंजुमन में-
अभिसार ज़िंदगी है
कभी जिन्दगी ने
जीने की ललक
बच्चे से बस्ता है भारी
बाँटी हो जिसने तीरगी
मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

कविताओं में-
आत्मबोध
इंसानियत
एहसास
कसक
ज़िंदगी
द्वंद्व
दर्पण
फ़ितरत 
संवाद
सारांश
सिफ़र का सफ़र

  बच्चे से बस्ता है भारी

बच्चे से बस्ता है भारी।
ये भविष्य की है तैयारी

खोया बचपन, सहज हँसी भी
क्या बच्चे की है लाचारी

भाषा, पहले के आका की
पढ़ने की है मारामारी

भारत को इंडिया हैं कहते
हिन्दी लगती है बेचारी

टूटा-सा घर देख रहे हो
वह विद्यालय है सरकारी

ज्ञान, दान के बदले बेचे
शिक्षक लगता है व्यापारी

छीन रहा जो अधिकारों को
क्यों कहलाता है अधिकारी

मंदिर, मस्जिद और संसद में
भरा पड़ा है भ्रष्टाचारी

हुआ है विकसित देश हमारा
घर घर छायी है बेकारी

सुमन पढ़ा जनहित की बातें
बिलकुल मानो है अखबारी

१७ अगस्त २००९

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