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अनुभूति में श्यामल सुमन की रचनाएँ-

मुक्तक में-
चेतना (चार मुक्तक)

दोहों में-
दोहों में व्यंग्य
नेता पुराण

हार जीत के बीच में

अंजुमन में-
अभिसार ज़िंदगी है
कभी जिन्दगी ने
जीने की ललक
बच्चे से बस्ता है भारी
बाँटी हो जिसने तीरगी
मुझको वर दे तू
मुस्कुरा के हाल कहता
मेरी यही इबादत है
मैं डूब सकूँ
रोकर मैंने हँसना सीखा
रोग समझकर
साथी सुख में बन जाते सब
हाल पूछा आपने

कविताओं में-
आत्मबोध
इंसानियत
एहसास
कसक
ज़िंदगी
द्वंद्व
दर्पण
फ़ितरत 
संवाद
सारांश
सिफ़र का सफ़र

 

ज़िंदगी

आग लग जाए जहाँ में, फिर से फट जाए ज़मीं।
मौत हारी है हमेशा, ज़िंदगी रुकती नहीं।

आँधी आगे या तूफ़ान, बर्फ़ से गिरे या फिर चट्टान,
उत्तरकाशी, भुज, लातूर सुनामी और पाकिस्तान।
मौत का तांडव रौद्र-रूप में, फँसी ज़िंदगी अंधकूप में,
लाख झमेले आने पर भी, बढ़ी ज़िंदगी छाँव-धूप में।

दहशतों के बीच चलकर, खिल उठी है ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा, ज़िंदगी रुकती नहीं।

कुदरत के इस कहर को देखो, और प्रलय की लहर तो देखो,
हम विकास के नाम पे पीते, धीमा-धीमा ज़हर तो देखो।
प्रकृति को हमने क्यों छोड़ा, इस कारण ही मिला थपेड़ा,
नियति-नियम को भंग करेंगे, रोज़ बढ़ेगा और बखेड़ा।

लक्ष्य नियति के साथ चलना, और सजाना ज़िंदगी।
मौत हारी है हमेशा ज़िंदगी रुकती नहीं।

युद्धों की एक अलग कहानी, बच्चे बूढ़े मरी जवानी,
कुरुक्षेत्र से अब इराक तक, रक्तपात की शेष निशानी
स्वार्थ घना जब-जब होता है, जीवन-मूल्य तभी खोता है,
करुण भाव से मुक्त हृदय भी, विपदा में संग-संग रोता है।

साथ मिलकर जब बढ़ेंगे, दूर होगी गंदगी।
मौत हारी है हमेशा, ज़िंदगी रुकती नहीं।

जीवन है चलने का नाम, रुकने से नहीं बनता काम,
एक की मौत कहीं आ जाए, दूजा झंडा लेते थाम।
हाहाकार से लड़ना होगा, किलकारी से भरना होगा,
सुमन चाहिए अगर आपको, काँटों बीच गुज़रना होगा।
प्यार करे मानव मानव को, यही करें मिल बंदगी।
मौत हारी है हमेशा, ज़िंदगी रुकती नहीं।

16 मई 2006

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