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अनुभूति में डॉ. हरदीप संधु की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
गधा कौन
मिट्टी का घरौंदा
मेरे गाँव की फिरनी
रब न मिला

हाइकु कविता

हाइकु में-
सात हाइकु

 

रब न मिला

पूजा के उपरान्त
अगरबत्ती की राख ही
हाथ आई थी मेरे
बहुत ढूँढा....बहुत ही ढूँढा
रब न मिला मुझे
एक दिन मन में
रब को मिलने की ठानी
खाना न मैं खाऊँगी
मैं भूखी ही मर जाऊँगी
जब तक रब को न पाऊँगी
तभी एक भिखारी ने
मेरे द्वार आ दस्तक दी
भूखा था वो शायद
माँग रहा था वो खाना
मैने कहा अभी नहीं
मैं तो रब को खोज रही हूँ
थोड़ी देर बाद तुम आना
फिर एक कुतिया ने
मेरे सामने आ चऊँ -चऊँ की
भूखी होगी वो भी शायद
पर मैने उसे भी फटकारा
थोड़ी देर बाद...
एक बूढ़ी अम्मा आकर बोली
बेटी रास्ता भूल गई हूँ
और सुबह से भूखी भी हूँ
क्या थोड़ा खाने को दोगी
मैने कहा .....
जा.. रे.. जा...
जा... रे... अम्मा
रास्ता नाप तू अपना
मैं तो कर रही हूँ
इन्तज़ार अपने रब का
तभी आसमान में
गूँजी एक आवाज़
किस रब का
है तुझे इन्तज़ार
मैं तो आया
तीन बार तेरे द्वार
पर तूने मुझे
ठुकराया बार-बार
अगर रब को है तुमने पाना
छोड़ दे तू इधर-उधर भटकना
मैं तो हर कण में हूँ
और रहता तेरे पास ही हूँ
ज़रा अपने मन की
खोल तू आँखे
पाओगी मुझे
हर प्राणी में

३० मई २०११

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