अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में श्रीकृष्ण सरल की रचनाएँ-

कविताओं में-
आँसू
छोड़ो लीक पुरानी
जवानी खुद अपनी पहचान
देश के सपने फूलें फले
देश से प्यार
धरा की माटी बहुत महान
नेतृत्व
प्रकृति कुछ पाठ पढ़ाती है
पीड़ा का आनंद
प्रेम की पावन धारा
मत ठहरो
मुझमें ज्योति और जीवन है
वीर की तरह
शहीद
सैनिक

  प्रेम की पावन धारा

प्रेम की पावन धारा है,
प्रेम दीपक मन मन्दिर का।
आत्मा का उजियारा है,
प्रेम की पावन धारा है।

प्रेम से हृदय स्वच्छ होता है,
प्रेम है पाप कलुष धोता है।
प्रेम संबल है जीवन का,
प्रेम ने विश्व सँवारा है।
प्रेम की पावन धारा है।

प्रेम उन्नति का साधन है,
प्रेम का हर क्षण पावन है।
प्रेम के बिना दिव्य जीवन,
सिंधु जल जैसा खारा है।
प्रेम की पावन धारा है।

प्रेम जीवन तरणी खेता,
प्रेम प्रतिदान नहीं लेता।
प्रेम प्रेरक शुभ कर्मों का,
प्रेममय यह जग सारा है।
प्रेम की पावन धारा है।

प्रेम, यह जग की भाषा है,
प्रेम, सबकी अभिलाषा है।
प्रेम ने पातक धोए है,
धरा पर स्वर्ग उतारा है।
प्रेम की पावन धारा है।

१६ जून २००५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter