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अनुभूति में रमेश गौतम की रचनाएँ— 

नये गीतों में-
एक नदी
गीत जल संवेदना के
पाँखुरी नोची गई
मत उदास हो
मैं अकेला ही चला हूँ
शुभ महूरत

गीतों में-
मान जा मन
जादू टोने

शब्द जो हमने बुने

 

पाँखुरी नोची गई

फिर सुनहरी
पाँखुरी नोची गई
फिर हमारी शर्म से गर्दन झुकी

फिर हताहत देवियों की देह है
फिर व्यवस्था पर बहुत सन्देह है
फिर खड़ी
संवदेना चौराह पर
फिर बड़े दरबार की साँसें रुकीं

फिर घिनौने क्षण हमें घेरे हुए
एक गौरैया गगन कैसे छुए
लौटती जब
तक नहीं फिर नीड़ में
बन्द रहती है हृदय की धुकधुकी

फिर सिसकती एक उजली सभ्यता
फिर सभा में मूक बैठे देवता
मर गई है
फिर किसी की आत्मा
एक शव-यात्रा गली से जा चुकी

फिर हुई है बेअसर कड़वी दवा
फिर बहे कैसे यहाँ कुँआरी हवा
कुछ करो तो
सार्थक पंचायतों में
छोड़कर बातें पुरानी बेतुकी

६ अप्रैल २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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