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                     अनुभूति में
					स्वदेश की रचनाएँ- 
                      
						छंदमुक्त में- 
						 
                      
						मंजिलें 
						हमसफर 
						अमर हो जाए 
                      
                       
                       
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						अमर 
						हो जाये  
						 
						दिल डर जाता है घबरा कर  
						अजीब से ख्यालों को याद कर  
						 
						जरा आप भी देखें सोच कर  
						किसी दिन अत्यधिक नाराज हो कर  
						अगर परमपिता परमेश्वर  
						दुनिया रख दे उलट पुलट कर। 
						 
						यदि कह दें वे बुलाकर  
						आज मत उदित होना दिवाकर  
						चाँद तारों को भेज दें वे लिखकर  
						एक भी किरन न पहुँचे धरती पर  
						वायु को भी बता दें समझा कर  
						जाओ कहीं छुप जाओ जाकर  
						और जल को कह दें डराकर  
						बर्फ बन जाओ जमकर। 
						 
						हे मानव क्यों डरता है सोचकर  
						अगर ऐसा कुछ हो जाये अगर। 
						 
						फिर क्यों ईश्वर को भुलाकर  
						चलते हो गलत रास्तों पर  
						दूसरों का दिल दुखाकर  
						खुश हो जाते हो जी भर  
						और पराया धन छीनकर  
						भरते हो अपना घर। 
						 
						कहाँ ले जाओगे सब चुराकर  
						सब कुछ यहीं छूट जायेगा मरने पर  
						अपनी अंतरात्मा में देखो झाँक कर  
						आवाज देता है तुम्हें धिक्कार कर। 
						 
						मानव जीवन तो है ही दुश्कर  
						फिर भी ईश्वर को धन्यवाद कर  
						जिसने सूरज चाँद बनाकर  
						रोज समझाता है इशाराकर। 
						 
						इसलिये रख लो गाँठ बाँध कर 
						दुनिया में आये हो अगर  
						तो जियो दूसरों के लिये मगर  
						कि नाम तुम्हारा अमर हो जाये  
						नाम तुम्हारा अमर हो जाये। 
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