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                     अनुभूति में
					स्वदेश की रचनाएँ- 
                      
						छंदमुक्त में- 
						 
                      
						मंजिलें 
						हमसफर 
						अमर हो जाए 
                      
                       
                       
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						हमसफर  
						 
						चूरचूर चूरचूर सपने हुये 
						दुश्मन हमीं अपने हुये  
						मिली खाक में जिन्दगी 
						किस खुदा की करें बन्दगी। 
						 
						एक मौत के इंतजार में 
						रोज रोज मरते रहे 
						जिससे प्यार की थी आस  
						उसी से डरते रहे। 
						 
						तिनके तिनके से बना घोंसला 
						हवा के तेज झोंकों में बसता नहीं  
						तेज धार में जिन्दगी को 
						किनारा मिलता नहीं। 
						 
						जीवन में नजरियों का इतना फर्क  
						कैसे हो हमसफर का साथ 
						मेरे जीवन साथी बताओ 
						क्यों दिया मेरे हाथों में अपना हाथ। 
						 
						लड़ते लड़ते बहुत दूर आ गयें हम 
						दोपहर बीती सूरज अस्त होने को है 
						आओ अब हम अब समझौता कर लें 
						जिन्दगी अपने अपने ढंग से गुजर कर लें। 
						 
						कच्चे धागों का यह रिश्ता 
						बार बार तो साथ मिलता नहीं  
						जिन्दगी तो बस जीने का नाम है 
						इसमें मुड़ मुड़ कर देखने का क्या काम है। 
						 
						जो मासूम फूल हमने खिलाये हैं 
						वो कहीं मुरझा ना जायें  
						इन्हें फलने फूलने दो  
						अपनी अपनी जिन्दगी जी लेने दो। 
						मिलकर दुख सुख बाँट ना सके 
						तो क्या हुआ  
						उनके सपनों में हमें 
						अपने सपने देख लेने दो।   |