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१६. २. २००९

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मन मेरा ये चाहे छू लूँ
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  मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।

फिर भी मुझको इच्छा-बल से
बढ़ना है- चढ़ना है।
रस्ता चाहे कैसा भी हो
मुझको तय करना है।
दृढ़-विश्वास जो मेरा साथी
क्यों न करूँ प्रयास।

मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।

जीवन के इस इक-इक पल को
मुझको यहाँ भुनाना।
सुख-चंदा-सा, दुख-सूरज-सा
सबको गले लगाना।
दिल में आशा किरण जगी फिर
तम की क्या औकात।

मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।

-- दुर्गेश गुप्त ''राज''

इस सप्ताह

गीतो में-

दिशांतर में-

छंद मुक्त में-

दोहों में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
९ फरवरी वसंत विशेषांक में

गीतों में- यतीन्द्र राही, कुसुम सिन्हा, कमल किशोर भावुक, डॉ. महेन्द्र भटनागर,  डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. सरस्वती माथुर, नित्यगोपाल कटारे, मानोशी चैटर्जी,  ममता किरण, राजेंद्र शुक्ल राज, श्यामल सुमन, शशि पाधा

छंद-मुक्त में- जीतेन्द्र चौहान, तेजराम शर्मा, निर्मल गुप्ता, मधुलता अरोड़ा, रजनी भार्गव, राकेश खंडेलवाल, लेफ्टिनेंट कर्नल गोपाल वर्मा, विनय जोशी, शार्दूला, डॉ. सरस्वती माथुर

छंदों में- ओमप्रकाश तिवारी, कमल किशोर भावुक
दोहों में- यतीन्द्र राही, रामनारायण त्रिपाठी पर्यटक

मुक्तक में- कमल किशोर भावुक
ग़ज़लों में- कुसुम सिन्हा, महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

संकलन में- वसंती हवा  

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