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अनुभूति में अनिता मांडा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
सितारे रिश्ते इंसान

अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे
 


 

 

एक इबादत

एक इबादत
एक साधना
मीठा-सा संगीत का झरना
छैनी और हथौड़े की टंकार से उपजा
वो कौनसी ताकत थी
जिसने तुम्हें कभी रुकने नहीं दिया
सर्दी, गर्मी, बरसात
सबका एक सा मौसम
बाइस बरस तक
बस प्यार का मौसम
एक-एक पल इबादत का पल
दशरथ माँझी काटते रहे तुम
बाइस साल तक पहाड़
अपनी प्रेयसी(पत्नी) की प्रेरणा से
अमर तुम्हारा प्यार...

दिल को तुम्हारे सुकूँ देती होगी
उन पाँवों के छालों की दुआ
जो रोज छिल जाते थे
पहाड़ पार जाने में...

बाइस साल तक पत्थर जोड़कर
हजारों हाथों ने खड़ा किया
एक मोजजा
एक तिलिस्म
एक ख़्वाब किसी शहंशाह का
साकार किया था...
सुना है आज भी कई सिसकियाँ
उसमें रखी कब्र को
बैचेन कर जाती हैं!

१ अक्तूबर २०१६

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