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अनुभूति में अनिता मांडा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
सितारे रिश्ते इंसान

अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे

 

 

सभ्यताएँ

कहीं रेत के समन्दर में
कहीं सुप्त नदियों की गोद में
गहरी डूबी सभ्यताएँ
सोई होंगी।

किसी लम्हें बाहर आकर
बदल सकती हैं वो
इतिहास भी
जैसे सौ-सवा सौ साल पहले
सिन्धु और मोहनजोदड़ो की नगरी
सोई थी,
धरा की गोद में
किसी पुरातत्ववेत्ता की
प्रतीक्षा में।

१ अक्तूबर २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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