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अनुभूति में अनिता मांडा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
सितारे रिश्ते इंसान

अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे
 

 

गला के हाड़ अपने

गला के हाड़ अपने खास कुछ सामान जोड़े हैं
हकीक़त ने सदा ही खूबसूरत ख़्वाब तोड़े हैं

खुला आकाश सर पे है तना, धरती बिछौने सी
ग़रीबी नाम है जिसका, वहाँ सौ रोग थोड़े हैं

सितारों की न पाली आरज़ू दिल में कभी हमने
उजाले राह से लेके अँधेरे आज मोड़े हैं

अँगूठा काट लेंगे ये, तुम्हें अपना बतायेंगे
लुटेरे हैं सभी देखो भलों का भेष ओढ़े हैं

बना देंगे तुझे पत्थर, खुदा खुद ही बनेंगे ये
लगेगी दाँव पर अस्मत तुम्हारी ये निगोड़े हैं

१ फरवरी २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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