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अनुभूति में गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’ की रचनाएँ -

अंजुमन में-
अच्छी सी कुछ बात करें
और दिन आए न आए
दरिया तो वही है
धूल काफी जमा है
नहीं कभी भी ऐतबार हुआ
हम समंदर के तले हैं

 

दरिया तो वही है

दरिया तो वही है, क्यों किनारे बदल गए।
मौसम को है गिला क्यों नजारे बदल गए।

बस्ती वही है छोडके जिसको गए थे हम,
लेकिन यहाँ क्यों लोग ये सारे बदल गए।

हमको शिकस्त देने की उनमें न ताब थी,
सबको पता है खेल में मोहरे बदल गए।

दिल की रगों से बात क्यों करती नहीं गजल,
लगता है लफ्ज और इशारे बदल गए।

जो भी मिले क्या खूब हमें रहनुमा मिले,
अच्छा हुआ जो पांव हमारे सम्भल गए।

२७ दिसंबर २०१०

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