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अनुभूति में कुंवर बेचैन की रचनाएँ—

हाइकु में-
वर्षा हाइकु

गीतों में—
ओ बासंती पवन

दोहों में—
नौ दोहे

अंजुमन में—
अंगुलियाँ थाम के
कफ़न बाँधकर
करो हमको न शर्मिंदा
खुद को नज़र के सामने
दो दिलों के दरमियाँ
दोनों ही पक्ष
धुआँ
नीर की गठरी
प्यासे होंठों से
फिर युधिष्ठिर को पुकारा
बीती नहीं है रात
मत पूछिए

 

मत पूछिए

मत पूछिए कि कैसे सफ़र काट रहे हैं
हर साँस एक सज़ा है मगर काट रहे हैं

ख़ामोश आसमान के साये में बार-बार
हम अपनी तमन्नाओं का सर काट रहे हैं

कमज़ोर छत से आज भी एक ईंट गिरी है
कुछ लोग हैं कि फिर भी गदर काट रहे हैं

आधी हमारी जीभ तो दाँतों ने काट ली
बाकी बची को मौन अधर काट रहे हैं

दो चार हादसों से ही अख़बार भर गए
हम अपनी उदासी की ख़बर काट रहे हैं

हर गाँव पूछता है मुसाफ़िर को रोक कर
हमने सुना है हमको नगर काट रहे हैं

इतनी ज़हर से दोस्ती गहरी हुई कि हम
ओझा के मंत्र का ही असर काट रहे हैं

कुछ इस तरह के हमको मिले हैं बहेलिये
जो हमको उड़ाते हैं न पर काट रहे हैं
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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