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आदमी क्या
इक नई कशमकश
खेत सारे छिन गए
नज़र में आजतक
बहन बेटियाँ
बहुत नज़दीक
बाबू जी

मन में मेरे

 

इक नई कशमकश

इक नई कशमकश से गुज़रते रहे
रोज़ जीते रहे रोज़ मरते रहे

हमने जब भी कही बात सच्ची कही
इसलिए हम हमेशा अखरते रहे

कुछ न कुछ सीखने का ही मौक़ा मिला
हम सदा ठोकरों से सँवरते रहे

रूप की कल्पनाओं में दुनिया रही
खुशबुओं की तरह तुम बिखरते रहे

ज़िन्दगी की परेशानियों से “यती”
लोग टूटा किये, हम निखरते रहे

६ दिसंबर २०१०

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