| अनुभूति में
					ओम प्रकाश यती की रचनाएँ— 
                   नई रचनाएँ-कितने टूटे कितनों का मन हार गया
 छिपे हैं मन में जो
 छीन लेगी नेकियाँ
 बुरे की हार हो जाती है
 हँसी को और 
					खुशियों को
 अंजुमन में-अँधेरे जब ज़रा
 आदमी क्या
 इक नई कशमकश
 खेत सारे छिन गए
 नज़र में आजतक
 बहन बेटियाँ
 बहुत नज़दीक
 बाबू जी
 मन में मेरे
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					नज़र में आजतक
 नज़र में आज तक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
 तेरे चेहरे के अन्दर दूसरा चेहरा नहीं निकला
 
 कहीं मैं डूबने से बच न जाऊँ, सोचकर ऐसा
 मेरे नज़दीक से होकर कोई तिनका नहीं निकला
 
 ज़रा सी बात थी और कशमकश ऐसी कि मत पूछो
 भिखारी मुड़ गया और जेब से सिक्का नहीं निकला
 
 सड़क पर चोट खाकर आदमी ही था गिरा लेकिन
 गुज़रती भीड़ का उससे कोई रिश्ता नहीं निकला
 
 जहाँ पर ज़िन्दगी की यू कहें खैरात बँटती थी
 उसी मन्दिर से कल देखा कोई ज़िन्दा नहीं निकला
 ६ दिसंबर २०१० |