चाहता हूँ
आपके हर गम को सीने से लगाना चाहता
हूँ
खुश्क हैं आँखें मेरी आँसू बहाना चाहता हूँ
क्या करूँ पर विष वमन करती हुई
इन चिमनियों का
फूल तो हर चंद मैं हर सू खिलाना चाहता हूँ
छल रहे हैं जो निरन्तर चहरे दर
चहरे चढ़ाकर
उनके चेहरों से सभी चहरे हटाना चाहता हूँ
आदमी इंसान बन जाएँ यही कोशिश
है मेरी
आदमी को देवता मैं कब बनाना चाहता हूँ
युग-युगों से ज़ुल्म सहकर दिल
जो ठंडे पड़ चुके हैं
उनमें 'पुर' आतिश बग़ावत की जगाना चाहता हूँ
१५ मार्च २०१० |