मुश्किलें आती
रहीं मुश्किलें आती रही,
हादिसे बढ़ते गए।
मंज़ि़लों की राह में, क़ाफ़िले बढ़ते गए।
दरमियाँ थी दूरियाँ, दिल मगर
नज़दीक़ थे
पास ज्यों-ज्यों आए हम, फ़ासले बढ़ते गए।
राहरवों का होंसला, टूटता देखा
नहीं
ग़रचे दौराने-सफ़र, हादिसे बढ़ते गए।
साथ रह कर भी बहम हो न पाई
ग़ुफ़्तग़ू
ख़ामशी के दम ब दम, सिलसिले बढ़ते गए।
हम थे मंज़िल के क़रीब, और सफ़र
आसान था
यक-ब-यक तूफ़ाँ उठा, वस्वसे बढ़ते गए।
किस्सा-ए-ग़म से मेरे कुछ न आँच
आई कभी
मेरे दुख और उनके 'पुरु' कहकहे बढ़ते गए।
१५ मार्च २०१० |