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अनुभूति में पुरु मालव की रचनाएँ

अंजुमन में—
अँधेरा सहा है
अब साथ भी उनका
उनसे यों जुदा होकर
क्यों ऐसा
चाहता हूँ
मुश्किलें आती रहीं
रिश्तों से
सैकड़ों ग़म दिल पे

 

रिश्तों से

रिश्तों से अब डर लगता है।
टूटे पुल-सा घर लगता है।

चेहरों पे शातिर मुस्कानें
हाथों में खंजर लगता है।

संग हवा के उड़ने वाला
मेरा टूटा पर लगता है।

हथियारों की इस नगरी में
जिस्मि लहू से तर लगता है।

जीवन के झोंकों पर तेरा
साथ हमें पल भर लगता है।

सारा जग सिमटा घर में तो
घर जग के बाहर लगता है।

१५ मार्च २०१०

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