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अनुभूति में पुरु मालव की रचनाएँ

अंजुमन में—
अँधेरा सहा है
अब साथ भी उनका
उनसे यों जुदा होकर
क्यों ऐसा
चाहता हूँ
मुश्किलें आती रहीं
रिश्तों से
सैकड़ों ग़म दिल पे

  उनसे यों जुदा होकर

उनसे यों जुदा होकर फिर क़रीब आने में
देर लगती हैं आखिर फ़ासले मिटाने में

कितनी देर लगती है आसमाँ झुकाने में
लोग-बाग माहिर है उँगलियाँ उठाने में

किस तरह भला उसने ये जहाँ बना डाला
दम निकल गया मेरा अपना घर बनाने में

आजमाके तो देखूँ एक बार उसको भी
जो य़कीन रखता हो सबको आजमाने में

तेरे सामने सारा रोम जल गया नीरो
तू लगा रहा केवल बाँसुरी बजाने में

मुश्किलों से घबरा कर राह में न रुक जाना
ये तो काम आती हैं हौसला बढ़ाने में

दिन सुहाने बचपन के रुठ जाएँगे इक दिन
इल्म ये कहाँ था पुरु मुझको उस ज़माने में

१५ मार्च २०१०

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