अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में राम मेश्राम की रचनाएँ-

अंजुमन में-
इतना क्यों तू
कक्का जी
मैं महान हूँ
रोशनी से दिल का रिश्ता
सर में सौदा और कुछ था

 

इतना क्यों तू

इतना क्यूँ तू मिमियाता है?
तू तो आदम का बच्चा है

भाग्य-लक्ष्मी दासी जिसकी
तू भी तो उसका चमचा है

मेरा बातूनी मन मुझसे
हर-हर लम्हा बतियाता है

दिल का कुआँ सदा देते ही
जीवन-सरगम घुन्नाता है

राजनीति का डॉन हमेशा
लोकतंत्र को गरियाता है

आला अफ़सर रोज़ धड़ाधड़
कविता पर कविता लिखता है

राजनीति का भूत, न पूछो
मार-मार कर सहलाता है

तेरे-मेरे सबके भीतर
एक नदी है, वह कविता है

गाता जा रे, मत घबरा रे
भीड़ बहुत है, तू तनहा है

२ दिसंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter