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अनुभूति में राम मेश्राम की रचनाएँ-

अंजुमन में-
इतना क्यों तू
कक्का जी
मैं महान हूँ
रोशनी से दिल का रिश्ता
सर में सौदा और कुछ था

 

सर में सौदा और कुछ था

सर में सौदा और कुछ था, मुँह से निकला और कुछ
गालियों ने कर दिया कोताह किस्सा और कुछ

कौन से कमरे में इज्जत, जा के चेहरा ढाँप ले
अनबिके संसार के भीतर लजाया और कुछ

आपने बेची खबर, खबरों ने बेचा आपको
मीडिया ने आप-हम-सबको परोसा और कुछ

लूट इनकी, राज उनका, वोट ही तो आपका
और आगे मोहतरम देखें तमाशा और कुछ

छा गया पश्चिम का बादल, नाम है वैश्वीकरण
इस खुले हाथों लुटी दौलत का तोहफा और कुछ

वाकया था और कुछ, अफवाह फैली और कुछ
फिर दलालों की दलाली ने दलेला और कुछ

कर चुके जो कुछ महाजन, क्यूँ न हम भी वह करें
देश-पूजा, भेंट-पूजा, पेट-पूजा और कुछ

धन्य गुरुघंटाल! 'औरत-मुक्ति' का दर्शन तेरा
स्वर्ग था कुछ और ही, तूने दिखाया और कुछ

२ दिसंबर २०१३

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