अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सतीश कौशिक की रचनाएँ-

नई रचनाओं में
अब शहर की हर फिजा
किसी के ख्वाब में
रेहन हुए सपने भी
सोचों को शब्द

अंजुमन में-
आ गजल कोई लिखें
दर-बदर ख़ानाबदोशों को
फिर हवा आई
सच को जिसने

 

सोचों को शब्द

सोचों को शब्द देने से डरते रहे हैं हम
ख़ामोश हर गली से गुज़रते रहे हैं हम

हम कंठ फाड़-फाड़ कर चिल्ला नहीं सके
ख़ामोशियों का दंड हाँ भरते रहे हैं हम

लोगों ने आइनों की वो दीवार खड़ी की
बनकर महज़ अक्स उभरते रहे हैं हम

माना कि तेरी बज़्म में ये ज़ुर्म था मगर
फिर भी वफ़ा का ज़िक्र तो करते रहे हैं हम

जब भी हमारे हाथ उठे आसमान में
होकर लहू सड़क पे बिखरते रहे हैं हम

१७ सितंबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter