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अनुभूति में शंभुनाथ तिवारी की रचनाएँ-

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जिगर में हौसला
ज़िंदगी
नहीं कुछ भी
बेकरार क्या करता

हैरानी बहुत है
हौसले मिटते नहीं

 

बेकरार क्या करता

अब और खुद को भूला बेकरार क्या करता
मैं जान-बूझकर पत्थर से प्यार क्या करता

मुझे जो छोड़ गया अजनबी-सा राहों में
मैं उम्र भर उसी का इंतज़ार क्या करता

जिसे पता ही नहीं कुछ भी जान की कीमत
उसी पे ज़िंदगी अपनी निसार क्या करता

वो एक पल में कई रंग बदल लेता है
मैं ऐसे आदमी का एतबार क्या करता

ज़रा-सी बात पर शोरिश उठा दिया जिसने
उसी को ज़िंदगी का राज़दार क्या करता

कभी असर ही नहीं आह का हुआ जिस पर
मैं इल्तिजा उसी से बार-बार क्या करता

ग़मों ने चैन से मुझको कभी जीने न दिया
चंद लमहात को दिल का करार क्या करता

पता है मुझको, यकीनन है ज़िंदगी फ़ानी
मैं ज़िंदगी से प्यार बेशुमार क्या करता

हुए हैं एक ज़माने से जिगर के टुकड़े
मैं उसको और भला तार-तार क्या करता

तमाम उम्र ख़िज़ाँ में गुज़र गई मेरी
कोई कहे कि अब लेकर बहार क्या करता!

01 फरवरी 2007

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