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अनुभूति में शंभुनाथ तिवारी की रचनाएँ-

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क्या कहें जिंदगी
खूब दिलकश
दिल्ली में
मुश्किल है
लोग क्या से क्या

अंजुमन में-
आँखों के कोर भिगोना क्या
कौन यहाँ खुशहाल

जिगर में हौसला
ज़िंदगी
नहीं कुछ भी
बेकरार क्या करता

हैरानी बहुत है
हौसले मिटते नहीं

 

ज़िंदगी

मधुरतम अहसास-सी है ज़िंदगी
महकते मधुमास-सी है ज़िंदगी

चल बटोही राह में अविराम चल
गहन दृढ़ विश्वास-सी है ज़िंदगी

लहर बनकर तो नदी की देखिए
नित नए उल्लास-सी है ज़िंदगी

आस को छोड़ो न अंतिम साँस तक
पपीहे की प्यास-सी है ज़िंदगी

घोर सन्नाटा-उदासी के पलों में
वेदनामय हास-सी है ज़िंदगी

बर्फ़ बनकर गर कभी पिघले नहीं
घुटनमय संत्रास-सी है ज़िंदगी

छंद-लय-तुक-ताल गर कुछ भी नहीं
एक टूटे साज़-सी है ज़िंदगी

कल्पना के पंख फैलाए रहें
तो खुले आकाश-सी है ज़िंदगी

हो गईं मृतप्राय इच्छाएँ अगर
एक ज़िंदा लाश-सी ज़िंदगी!

01 फरवरी 2007

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