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अनुभूति में शंभुनाथ तिवारी की रचनाएँ-

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खूब दिलकश
दिल्ली में
मुश्किल है
लोग क्या से क्या

अंजुमन में-
आँखों के कोर भिगोना क्या
कौन यहाँ खुशहाल

जिगर में हौसला
ज़िंदगी
नहीं कुछ भी
बेकरार क्या करता

हैरानी बहुत है
हौसले मिटते नहीं

  लोग क्या से क्या

लोग क्या से क्या, न जाने हो गए
आजकल अपने, बेगाने हो गए

आदमी टुकड़ों में इतने बँट चुका
सोचिए कितने, घराने हो गए

बेसबब ही रहगुजर में छोड़ना
दोस्ती के आज माने हो गए

प्यार-सच्चाई-शराफत कुछ नहीं
आजकल केवल बहाने हो गए

वक्त ने की इसकदर तब्दीलियाँ
जो हकीकत थे फसाने हो गए

जो कभी इस दौर के थे रहनुमा
अब वही गुज़रे ज़माने हो गए

थे कभी दिल का मुकम्मल आइना
अब मगर चेहरे सयाने हो गए

जब हुआ दिल आशना ग़म से मेरा
दर्द के बेहतर ठिकाने हो गए 

१५ अप्रैल २०१६

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