अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में दिनेश पारते की रचनाएँ-

आह्वान
बढ़े चलो
इक आग लगा ली है
गानवी
जयघोष
मौन भंग
शुभ कामनाएँ

 

मौन भंग

क्षितिज बन गई सांध्य दुल्हन-
ओढ़कर के लाल आँचल,
प्राचीरों ने भाल पर-
अपने सजाया स्वर्ण सेहरा,
तुम नि:शब्द - निर्वाक हो
और मौन मैं भी,
मंद झोंके ये हवा के
कर रहे हैं कुछ इशारे,
मेघकृष्णों के हिंडोले डोलते से -
रीझती-सी बिजलियाँ कुछ कह रही हैं,
हो रहा है दृश्य यह अनुपम प्रणय का -
तुम अगर कुछ गुनगुनाओ -
तोड़ दूँगा मौन मैं भी।
तुम अगर कुछ गुनगुनाओ तोड़ दूँगा मौन मैं भी।

24 मार्च 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter