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अनुभूति में डॉ. जितेन्द्र वशिष्ठ
की रचनाएँ -

अंजुमन में-
आज फिर
त्योहारों के आने पर
बच्चों का दीवार पे लिखना
बस यों ही

  बच्चों का दीवारों पर लिखना

बच्चों का दीवार पे लिखना, अच्छा लगता है!
पल में रोना पल में हँसना, अच्छा लगता है!

वैसे तो ये प्यार-व्यार इक झंझट है यारो!
लेकिन इस झंझट में पड़ना, अच्छा लगता है!

ठोस ज़मीं पर पाँव जमाना वाजिब है माना-
हमको पर आकाश में उड़ना, अच्छा लगता है!

यों तो पहले से ही तय है, क्या होना लेकिन-
होने ना होने में रहना, अच्छा लगता है!

उनकी दुनिया में अपनी कीमत क्या है मालूम -
फिर भी उनको तकते रहना, अच्छा लगता है!

 

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