ऐसा लगता है
ऐसा लगता है कि उसमें ज़िंदगी
है ही नहीं
जैसी होती थी कभी वैसी नदी है ही नहीं
गाँव से लेकर शहर तक हर जगह
मौजूद है
किंतु जेहनों में हमारे रोशनी है ही नहीं
लोग बहलाने लगे हैं खुद को
बच्चों की तरह
जिसको पाकर खुश हैं वो असली खुशी है ही नहीं
चैनलों से मंच तक चर्चा है
जिसकी, धूम है
और कुछ भी हो मगर वह शायरी है ही नहीं
भर रहा है जाने कब से लोगों के
दिल में धुआँ
आग-सी लगती है लेकिन आग-सी है ही नहीं
बिन परिश्रम ही दिला दे कामयाबी
जो हमें
ऐसी तो कोई भी जादू की छड़ी है ही नहीं
कुछ न दुख होगा रईसों को, लगा
था दूर से
पास जाने पर लगा, कोई सुखी है ही नहीं!
१० अगस्त २००९ |