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अनुभूति में कमलेश भट्ट कमल की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
उम्र आधी हो चली है
ऐसा लगता है

क्या हुआ
मुकद्दर उसके जैसा

अंजुमन में—
झुलसता देखकर
न इसकी थाह है
नदी
नसीबों पर नहीं चलते
ना उम्मीदी में
पेड़ कटे तो
वहाँ पर
समंदर
हज़ारों बार गिरना है
हमारे ख्वाब की दुनिया

दोहों में—
छे दोहे

हाइकु में—
आठ हाइकु
होली हाइकु

 

उम्र आधी हो चली

उम्र आधी हो चली है पर नहीं समझे
ज़िंदगी का मर्म रत्ती भर नहीं समझे

व्यर्थ हैं सब डिग्रियाँ, यह लोग कहते हैं
प्यार के हमने अगर अक्षर नहीं समझे

आदमी हो तो समझ ले आदमी का दुख
आदमी का दुख मगर पत्थर नहीं समझे

दिल की बातें सिर्फ़ दिल वाले ही समझेंगे
दिल की बातें कोई सौदागर नहीं समझे

ज़िंदगी पूरी बिताकर के भी दुनिया में
संत दुनिया को ही अपना घर नहीं समझे!

१० अगस्त २००९

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