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राख का ढेर

  बिजूका

पहचानने में देर लगी मुझे
कि
वो है एक बूढ़ी मानव-देह
खेत में खड़े पुतले की तरह दिखती है जो
अचानक किसी ने उसे पुकारा बाबा कहकर
और तब न जाने क्यों
बाबा शब्द की ध्वनि उसे कँपा गई
चौंक कर नहीं, डर कर देखा उसने
कोई सवाल नहीं, कोई जवाब नहीं
उसकी समस्त झुर्रियों में छलकती दिखी एक पीड़ा
बिल्कुल वही पीड़ी जो हम दे रहे हैं
जाने-अनजाने उन झुर्रियों को।

सोचती हूँ मैं
कि
पहले खेतों की रक्षा के लिए
खड़े किए जाते थे निष्प्राण पुतले
जिन्हें कहते थे बिजूका
इस आशय से कि उन्हें समझा जाए मानव देह
मगर अब
बना दी जाती है कोई प्राणवानद बूढ़ी मानव देह
एक निष्प्राण बिजूका।

२३ दिसंबर २०१३

 

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