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  पिघलने के बाद

आदमी पता नहीं क्या क्या बनाता है
कांच व लोहे को पिघलाकर
फिर भी जाता है पर्वत–शिखरों पर
हिमखंडों को पिघलता हुआ देखने

हिमखंड तो हिमखंड हैं
वह पिघल जाता है स्वयं ही गर्मी पाकर
और आदमी
लोहे और कांच जैसी चीज को पिघला देता है जबरन
किन्तु
नहीं देखता पिघलाकर उसे
जिसे कहते हैं दिल
दिल‚ जो पिघल कर बह उठता है नदी की तरह
और बुझाता है प्यास धरती की
धरती‚ जिसमें उष्णता है‚ जिसमें स्निग्धता है और न जाने क्या–क्या
धरती तो धरती है
जो बुला लेती है
पर्वत–शिखरों पर से भी हिमखंडों को अपने पास
मगर
पिघलने के बाद।

१६ अक्तूबर २००४ 

 

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