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अनुभूति में किशोर दिवसे की रचनाएँ

छंदमुक्त में—
और मैं लिखता हूँ कविता
किया है कभी अहसास
नल
मन और मस्तिष्क
स्वयंभू-युग पुरुष
 

 

और मैं लिखता हूँ कविता

जब चीखता है कोई अजन्मा
मशीनी हाथों से नोचने पर
सूँघता है सड़ी रोटी के टुकड़े
पन्नियाँ बीनता कोई बेबस
निहारता है कोई मेमना
मृत्युदाता कसाई के शस्त्र को
लेकिन जब सूख जाते हैं आँसू
तब मैं लिखता हूँ कविता
अपनी ही आँखों पर उभरती
नसों के खौलते लहू से!

२३ मार्च २०१५

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