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अनुभूति में किशोर दिवसे की रचनाएँ

छंदमुक्त में—
और मैं लिखता हूँ कविता
किया है कभी अहसास
नल
मन और मस्तिष्क
स्वयंभू-युग पुरुष
 

 

किया है कभी एहसास

स्वप्न रत शिशु की मुस्कान का
लोरी से उपजे स्पंदन का
सद्य प्रसूता की अनमोल तृप्ति का?
यौवन कलशों से लदी सद्य-स्नाता
और उन केशों की आदिम गंध का?
भूखी आँतों की अकुलाहट और
तपिश से दहकते मरू की रेत का?
इस्पाती औजारों से आक्रांत
गर्भस्थ नारी शिशु की चीखों का?
चरम पर तेज साँसों,थिरकते लबों
और युगल जिस्म के नर्तन का?
झुकी कमर, पोपले मुँह और
बूढ़े शरीर पर उम्र की सलवटों का?
बनकर से फौजी की पाती में छिपे विरह
और पाती बाँचती विरहन का?

२३ मार्च २०१५

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