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  झूठ तो झूठ है

झूठ का दामन न पकड़ो
इसके बल पर तुम न अकड़ो

सुना है झूठ के पैर नहीं होते
इसीलिये पकड़ नहीं पाते

अपनी रौ में, हवा में उड़ता है
खुद को ख़ुदा समझता है

गुमां होता है उसे खुद पर
कितनों के उसने कतरे हैं पर

लेकिन जब आता है झूठ
सच के सामने सिर झुकाये

सच से आँखें नहीं मिलाता
बोलने का साहस नहीं करता

झूठ हो जाता है कुंठित, बदतर
होने लगता है कुपित सब पर

डर सताता है पोल खुलने का
सच देता है दिलासा रक्षण का

और देखिये सच का असर
झूठ पानी पानी होकर

खुद पर शर्मिन्‍दा होकर
बिलख बिलखकर रो पड़ा

मन हो गया पानी-सा साफ
सच से कहा कर दो माफ

सच ने समझाया प्‍यार से
एक सच अच्‍छा है सौ झूठ से।

३१ अगस्त २००९

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