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पत्नी

"पत्नी" है बड़ी शानदार
अर्धांगिनी भी है
पति का सारा दारोमदार
अपने ऊपर ले लेती है
पत्नी की इजाज़त के बिना
पति किसी की ओर नहीं देखता
वही तय करती है
जिंद़गी के सारे कॉम्बिनेशन्स
वे चाहे कितने ही अनचाहे हों
पति को स्वीकारना है
अर्धांगिनी जो ठहरी!
पत्नी-पद भुला देता है
सारे कोमल भाव
एकाधिकार की भावना उसे
कहीं का भी नहीं छोड़ती
हमेशा सतर्क नज़रें
सारी मासूमियत, संवेदनशीलता
और ज़िंदगी का रस
निचोड़ लेती हैं, सुखा देती हैं
पत्नी-पद पर आसीन होते ही
अधिकारों की ऐसी छड़ी चलती है
कि सारे कोमल भाव
अपने-आप तिरोहित हो जाते हैं
आपसी टकराव दोनों के
अस्तित्व को ख़त्म कर देता है

२४ जनवरी २००५

 

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