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अनुभूति में एन के सोनी की रचनाएँ—

कविताओं में-
थोड़ा-सा दर्द
शब्दों का ताना-बाना
साधारण संसार

अंजुमन में-
फटी कमीज़
धूप का टुकड़ा

  धूप का टुकड़ा

अंधियारे कमरे में मेरे हाथ लग गया धूप का टुकड़ा।
नई उमंगे, नई तरंगे, मन में भर गया धूप का टुकड़ा।

कमरे में एक धूप का टुकड़ा, आता और चला जाता है।
फिर से आने का वादा कर खो जाता है धूप का टुकड़ा।

भरा हुआ है घर फिर भी सन्नाटा कोने-कोने में।
ऐसे में बातें करता है आकर मुझसे धूप का टुकड़ा।

अपने में हैं मस्त ये दुनिया, कौन किसीकी परवाह करता।
आसमान से सबको खुश करने को आता धूप का टुकड़ा।

बरसों से पहचान, फ़र्ज़ तो अपना निभाया करता है।
सुबह-सवेरे खिड़की पर दस्तक देता है धूप का टुकड़ा।

अपनी धूप का टुकड़ा, मुझको अक्सर छोटा लगता है।
जो औरों के पास बड़ा वो लगता मुझको धूप का टुकड़ा।

एक अकेला सूरज लेकिन धूप माँगने वाले सब है।
अपने-अपने भाग्य मुताबिक सबको मिलता धूप का टुकड़ा।

कभी कभी मैं सूरज से भी एक शिकायत करता हूँ।
मिलता कभी नहीं क्यों मुझको मेरे मन का धूप का टुकड़ा।

जीवन के सारे गम, दुविधायें हैं जो करो अंधियारा कमरा।
सुख के कुछ क्षण ऐसे लगते जैसे कोई धूप का टुकड़ा।

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