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अनुभूति में नियति वर्मा की रचनाएँ-

कविताओं में-
घर से निकलते ही
मुझे डर लगता है
ये शहर बड़ा सुकून देता है
स्त्री की मर्यादा

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घर से निकलते ही

घर से निकलते ही
हम एक लबादा ओढ़ लेते हैं

जो है नहीं
वह भी दिखाने को
कभी गम छिपाने को
कभी खुशियों के वास्ते
इक चादर झीनी सी रंगीन-सादा
सच के चेहरे पर लगाकर झूठ के मुखौटे
कभी पूरा कभी वो चेहरा आधा
कभी किसी से दिल लगाकर,
वफा से करके बेवफाई
उम्र भर निभाने का
इस वादा ओढ़ लेते हैं

घर से निकलते ही
हम एक लबादा ओढ़ लेते हैं

१६ मई २०११

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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