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अनुभूति में नियति वर्मा की रचनाएँ-

कविताओं में-
घर से निकलते ही
मुझे डर लगता है
ये शहर बड़ा सुकून देता है
स्त्री की मर्यादा

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मुझे डर लगता है

मुझे डर लगता है,
अपनी खामोशियों को शब्द देने से नहीं,
बल्कि उन शब्दों में अर्थ खंगालने वाले अर्थवेत्ताओं से
जो कि मेरे ही सामने
मेरी भावनाओं की उन शाब्दिक अभिव्यक्तियों को
तार-तार, बेजार करते हुए
क्षीण कर देंगे संवेदना तक उनकी सत्ताओं से
हाँ मुझे डर लगता है
निःशब्दता के इस घेरे के टूटने से नहीं
बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर
शब्दों के उच्छृंखल विषवाणों से

क्योंकि वाणी की उन्मुक्तता
भले ही कितनी भी सीमांत क्यों न हो
बहुत मुश्किल है उसे रोक पाना स्थिर पाषाणों से

१६ मई २०११

 

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