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अनुभूति में नियति वर्मा की रचनाएँ-

कविताओं में-
घर से निकलते ही
मुझे डर लगता है
ये शहर बड़ा सुकून देता है
स्त्री की मर्यादा

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ये शहर बड़ा सुकून देता है

दिन भर की थकान के बाद
अपने घर को लौटते
मदमस्त बहती हवाएं
ट्रेन के दरवाजे की ओट में
जब माथे को चूमती थीं
ये शहर बड़ा सुकून देता है

सड़कों पर दौड़ती
अनजानी भीड़ के बीच
रोजाना दिखने वाली
कुछ जानी-पहचानी शक्लों पर
जब पड़ती है नजर
ये शहर बड़ा सुकून देता है

कंक्रीट के जंगलों में
समुद्र के किनारे बैठकर
चांद के आलिंगन को आतुर लहरों पर
अस्ताचल होते सूरज को देखकर
जब मन प्रकृति में खोता है
ये शहर बड़ा सुकून देता है

कहते हैं यहां वक्त नहीं है
किसी के पास खुद के लिए भी
पर हादसों के इस शहर में
आतंकी हमलों और तूफानी बारिश में
जब हर शख्स 'सरमाया' बनता है
ये शहर बड़ा सुकून देता है

१६ मई २०११

 

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