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अनुभूति में नियति वर्मा की रचनाएँ-

कविताओं में-
घर से निकलते ही
मुझे डर लगता है
ये शहर बड़ा सुकून देता है
स्त्री की मर्यादा

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स्त्री की मर्यादा

क्या तुमने कभी
तथाकथित मर्यादा के नाम पर
अन्दर ही अंदर किसी अंतर्द्वंद से जूझती
एक स्त्री के अंतर्मन की पीड़ा
समझने की कोशिश की है

मुझे नहीं पता कि
तुम्हारा जबाव क्या होगा
तुम हमेशा की तरह
इस सवाल के मौन प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करोगे,
या फिर ये कहकर टाल जाओगे कि
एक स्त्री की पीड़ा केवल वही जान सकती है

पर जबाव चाहे जो भी हो,
तुम कहो या कि मौन रहो
हर स्त्री की जिंदगी का यह शाश्वत सत्य है,
जिससे शायद तुम भी इनकार नहीं करोगे

कि यदि वो वर्जनाओं के टूटने के डर से
आक्रांत हो उठती है,
तो रिश्तों को तोड़ने का इल्जाम उसी पर लगता है
और यदि अपने दर्द को
अपने ही भीतर समेटने की कोशिश करती है,
तो उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ता है

१६ मई २०११

 

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