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अनुभूति में प्रीत अरोड़ा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आज का इनसान
बाल अपराधी

बेटियाँ पराया धन
सपने देखा करो
प्रकृति का तांडव

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आज का इंसान

हारना मैंने सीखा नहीं है
जीतना मेरा लक्ष्य
यही सोच और पैसों की लम्बी दौड़
मैं रहूँ सबसे आगे मानव में लगी हौड़
सतरंगी सपनों मे उलझा वो ऐसा
धर्म-कर्म सब कुछ है पैसा
धन-सम्पदा, मान-मर्यादा, ऊँची आन और शान
मृग-तृष्णा ने ऐसा फाँसा, भूला भले-बुरे का ज्ञान
काला-धन और चोरबाजारी
हाय-रे गयी मति-मारी
चार-दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात
टूट गया, इक सुन्दर सपना, बिगड़ी सारी बात
काश, न उड़ता आसमान में
खुद की कर लेता पहचान
पश्चाताप के आँसू पीता
खो गया आदर-सम्मान
यही है आज का इंसान
यही है आज का इंसान

१८ अप्रैल २०११

 

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