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अनुभूति में प्रीत अरोड़ा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आज का इनसान
बाल अपराधी

बेटियाँ पराया धन
सपने देखा करो
प्रकृति का तांडव

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बेटियाँ पराया धन

बेटिया तो होती ही हैं धन पराया
राजा हों या रंक कोई न इसे रख पाया
बेटी -बेटे मे ये भेदभाव क्यों होता है?
बेटा अंश बढाता है, बेटी को पराया कहा जाता है
जिसको वो जानती तक नहीं,
उसी के साथ नाता जोड़ दिया जाता है
लालन -पालन और एक -सी शिक्षा -दीक्षा
फिर बेटी को ही क्यों देनी पड़ती है अग्नि -परीक्षा
जो एक पल भी नहीं होती आँखों से दूर
अचानक वो चली जाती है होकर मजबूर
कितना कठिन होता है
यूँ जिगर के टुकड़े को अपने से दूर कर देना
लाड-प्यार से पाली अपनी लाडली को
परायों के सपुर्द कर देना
माँ-बाप, भाई-बहन का प्यार छोड़कर
नए रिश्ते जोड़ लेती है पुराने तोड़कर
आँखों में
नए सपने ले चली जाती है नया संसार बसाने
बचपन की यादे भुलाकर
ससुराल के रिश्ते निभाने
बस फिर उसका ससुराल अपना हो जाता है
और मायका पराया
पति-बच्चों मे रमकर भूल जाती है
वो अपना पराया
हाय ये कैसी रीत, कोई भी इसे न जाना
किस बेदर्द ने बनाया ये दस्तूर पुराना

१८ अप्रैल २०११

 

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