अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सजीवन मयंक की
रचनाएँ -

नई ग़ज़लें-

एक दुश्मन
क्यों करते हो बात
मुझे चिढ़ा रहे हैं
यही सोचकर निकला

क्षणिकाओं में-
पाँच क्षणिकाएँ

अंजुमन में-
अजब यह माजरा देखा
अब आए बादल
आकाश साफ़ है
ज़िंदगी सिर्फ़ पानी रही
तूफ़ान से टकराते हैं
नचाते रहे पहले कठपुतलियाँ
भटक रहे हैं बाबू जी
याद आता है
सभी को लुत्फ़ आता है
हमको कोई गिला नहीं

कविताओं में-
जीवन क्या है
दीये का वक्तव्य

गीतों में-
अमावस का दर्
असीम स्वर खटक रहे हैं
खेतों में जिनका देवालय
गीता हो रहीम के घर में
पथ के विंध्याचल

संकलन में-
मेरा भारत-
आज तिरंगा फहराता है शान से
माटी चंदन है
मातृभाषा के प्रति-
हिंदी ने हमको एक रखा
हिंदी में कितना अपनापन
जग का मेला-
बंदर मामा

 

याद आता है

जब कभी गुज़रा ज़माना याद आता है
बना मिट्टी का अपना घर पुराना याद आता है

वो पापा से चवन्नी रोज़ मिलती जेब खर्चे को
वो अम्मां से मिला एक आध-आना याद आता है

वो छोटे भाई का लड़ना, वो जीजी से मिली झिड़की
सभी कुछ शाम को फिर भूल जाना याद आता है

सुबह मंदिर की पूजा साथ मस्ज़िद की अजानों का
अजब-सा एक गठबंधन सुहाना याद आता है

वो काली गाय रामू की वो अब्दुल की बड़ी बकरी
वो जंगल साथ जाना और आना याद आता है

वो अपना बाग अपने हाथ से रोपे हुए पौधे
वो उसके साथ संग क्यारी बनाना याद आता है

वो घर के सामने की अधखुली खिड़की अभी भी है
वहाँ पर छिप किसी का मुसकुराना याद आता है

वो उसका रोज़ ही मिलना न मिलना फिर कभी कहना
ज़रा-सी बात पर हँसना-हँसाना याद आता है

1 जून 2006

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter