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अनुभूति में संध्या सिंह की रचनाएँ -

गीतों में-
अब कैसे कोई गीत बने
कौन पढ़ेगा
परंपरा
मन धरती सा दरक गया
रीते घट सम्बन्ध हुए

दोहों में-
सर्द सुबह

छंदमुक्त में-
अतीत का झरोखा
खोज
बबूल
संभावना

सीलन

 

कौन पढ़ेगा

एक ओर से बढ़ा शिकारी
दूजी तरफ शेर की गर्जन
कातर आँखें घिरे हिरन की
क्या क्या कहतीं
कौन पढ़ेगा ?

साँस रोक कर हवा ठहरती
सन्नाटे बलवान हुए हैं
दबे पाँव लगती घातों के
जंगल में फरमान हुए हैं

मौन रहेगी फिर लाचारी
छल फिर कोई
झूठ गढ़ेगा

पैनी नज़रें दाँत नुकीले
एक प्यास की कीमत बाँचे
साँस-साँस पर भय चौकन्ना
नहीं मिले बेखौफ़ कुलांचे

कदम कदम पर सर्प टंगे हैं
वय की सीढ़ी
कौन चढ़ेगा ?

जंगल के दुःख ही काफी थे
शहरों ने आतंक बढ़ाया
अन्धकार और चकाचौंध ने
अपना अपना जाल बिछाया

इधर है खाई उधर कुआँ है
मृग बेचारा
किधर बढ़ेगा ?

२९ जुलाई २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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