अनुभूति में
संजय
आटेड़िया की
रचनाएँ -
छंदमुक्त में-
एक और अध्याय
कुछ रौबदार लोग
खूँटे से बँधे लोग
गाजरघास और विचार
माँ
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गाजरघास और विचार
बारिश की बूँदों के साथ
स्मृति पटल पर
उग आते हैं
गाजर घास की तरह
मन में विचार।
एक से दो और
असंख्य कल्पनाएँ
सफेद फूलों की तरह
असुगंधित।
लम्बी खेंच के बाद
मुर्झाते से
ये सफेद फूल
यकायक हल्की बौछारों से
प्रसन्नचित्त हो जाते हैं।
इनमें न जाने कहाँ से
समा जाती है
हल्की भीनी खुशबू
जो मन की तरंगों को
आत्मसात् कर लेती है।
ये विचार
बढ़ते रहते हैं
असंख्य गति से
उस छोर तक पहुँचने के लिए
जहाँ विश्वास है।
ये सफेद फूल
अपरिमित गति से
फैलते हैं जैसे
हवा के साथ
यहाँ-वहाँ
हर जगह
मिट्टी, हवा, पानी
और किरणों के साथ
मिलकर उग आती हैं
विचारों की कोपलें
जो, मन को
तरोताज़ा कर देती हैं।
इसका फैलना ही तो
विचारों का बढ़ना होता है
ये विचार कभी न खत्म होने वाले हैं
आशा, उत्साह और विश्वास के साथ।
१९ जनवरी २०१५
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