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अनुभूति में संजय आटेड़िया की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
एक और अध्याय
कुछ रौबदार लोग
खूँटे से बँधे लोग
गाजरघास और विचार
माँ

 

माँ

मेरे उठने से पहले
बुहार देती है माँ
सड़क
बीन देती है काँटे
बिखरे हुए कंकड़ भी
जहाँ से मैं गुजरता हूँ
हर रोज
रात-बिरात
साइकिल से

मेरे उठने से पहले
लगा देती है धूप-दीप
पूज देती है भगवान को
जिसे देखा नहीं है
उसने कभी

और मेरी नास्तिकता पर
लगा देती है
शब्दों की झड़ियाँ
कर देती है सराबोर
भावनाओं से

नहीं रोती वो रोना
अपनी फूटी तकदीर पर
जिससे छीन लिए गए
सारे-सुख समय से पहले

झेली है मार उसने
विपरीत परिस्थितियों की
और बनी है गुनहगार
समय की

१९ जनवरी २०१५

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