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अनुभूति में संजय आटेड़िया की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
एक और अध्याय
कुछ रौबदार लोग
खूँटे से बँधे लोग
गाजरघास और विचार
माँ

 

कुछ रोबदार लोग

कुछ लोग होते हैं
बडे़ मालदार
जो लोगों का उपयोग कर
फेंक देते हैं रैफर की तरह
मसलकर दूर तक।

और कुछ होते हैं
बडे़ रोबदार
जो फूँक देते हैं
सिगरेट के कश में
और झिड़क देते हैं उन्हें
भूरी राख की तरह,
रौंद देते हैं पैरों तले
अधजले डंठल को
कर देते हैं उनके सपनों को
चकनाचूर एक पल में।

गटक लेते हैं उन्हें एक साँस में
शराब से भरे पैग की तरह।

और लगा देते हैं बट्टा गुनहगारी का
ऐसे ही तो निर्दोष होते हैं शिकार हर रोज
हमारे सामने।

१९ जनवरी २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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