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अनुभूति में सौरभ राय भगीरथ की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
गाना गाया
चप्पल से लिपटी चाहतें
जूते
भौतिकी
संतुलन

 

गाना गाया

जीवन के इस तरफ
उस तरफ का अन्धकार
उस तरफ जाने क्या ?
आगे बढ़ा मैं रेंगता हुआ दौड़ जीता।
इस जीत में शामिल थे
मेरे चाहने वाले और वो जो मुझे पसंद नहीं थे।

अन्दर को बाहर कि तरफ पलटकर
मैंने कितनी बार रूप बदला
भटका हुआ मैं
हर घर में खामोश सा
रोशनी की दरारों को बंद करता रहा।
पर हर बार कहीं से रोशनी दीख जाती।
कितने अन्याय देखे
और चुप रहा।

मेरे नीचे कुचलकर कोई
धुँधली राह में छूट गया
उसे उठाने के बजाय
इधर भाग आया।
और लड़ते लड़ते नहीं
भागते भागते मारा गया।

भीड़ के इस संसार में
हर कोई अकेला
ऐसा जीना भी क्या
कि घर से बहार निकलने के
हर दरवाज़े बंद।
घर भी ऐसा कि दीवार से बड़ी दरार
भूकंप के बीच मलबे पर खड़ा।
मैं फिर भी ज़िन्दा रहा
अपनी बातें सबसे कहता, और ख़ुद पर हँसता
और जब अर्थ की अर्थी उठानी होती
कविता लिख लेता।

रहने और न रहने
के बीच
मैं
और मेरी कविताएँ।
हर गली नुक्कड़ से गुज़रा
अन्याय देखा और गुण्डों को नमस्कार किया
बोलने का मन बनाकर
घर में ठिठका-सा
बुदबुदाया और सो गया।
उठकर मैंने फिल्म देखी
गाना गाया
ज़िन्दगी में बड़ा मज़ा आया !!

१ अप्रैल २०१३

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