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अनुभूति में सौरभ राय भगीरथ की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
गाना गाया
चप्पल से लिपटी चाहतें
जूते
भौतिकी
संतुलन

 

संतुलन

मेरे नगर में
मर रहे हैं पूर्वज
ख़त्म हो रही हैं स्मृतियाँ
अदृश्य सम्वाद !
किसी की नहीं याद -
हम ग़ुलाम अच्छे थे या आज़ाद ?

बहुत ऊँचाई से गिरो
और लगातार गिरते रहो
तो उड़ने जैसा लगता है
एक अजीब सा समन्वय है
डायनमिक इक्वीलिब्रियम !

अपने उत्त्थान की चमक में
ऊब रहे या अपने अपने अंधकार को
इकट्ठी रोशनी बतलाकर
डूब रहे हैं हम ?

हमने खो दिये- वो शब्द
जिनमें अर्थ थे
ध्वनि, रस, गंध, रूप थे
शायद व्यर्थ थे।
शब्द जिन्हें कलम लिख न पाए
शब्द जो सपने बुनते थे
हमने खोए चंद शब्द
और भरे अगिनत ग्रंथ
वो ग्रंथ शायद सपनों से
डरते थे ।

थोड़े हम ऊँचे हुए
थोड़े पहाड़ उतर आए
पर पता नहीं इस आरोहण में
हम चल रहे थे या फिसल ?
हम दौड़ते रहे और कहीं नहीं गए
बाँध टूटने और घर डूबने के बीच
जैसे रुक सा गया हो
जीवन।

यहाँ इस क्षण-
न चीख़
न शांति
जैसे ठोकर के बाद का संतुलन।

१ अप्रैल २०१३

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